हद-ए शहर से निकली तों गाँव-गाँव चली , कुछ यादें मेरे संग पांव-पांव चली, सफर जो धुप का किया तो तजुर्बा हुआ, वो जिंदगी ही क्या जो छाँव-छाँव चली..!! BHAGI JAT
कैसा है शमशान देख ले , चल मेरा खलिहान देख ले, अगर देखना है मुर्दे को, तो चलकर एक किसान देख ले, सर्वनाश का सर्वे कर कर, पटवारी धनवान देख ले, फिर अंगूठा टिकाता जगह जगह, सेठ मेहरबान द...