हद-ए शहर से निकली तों गाँव-गाँव चली

हद-ए शहर से निकली तों गाँव-गाँव चली,
कुछ यादें मेरे संग पांव-पांव चली,
सफर जो धुप का किया तो तजुर्बा हुआ,
वो जिंदगी ही क्या जो छाँव-छाँव चली..!!
BHAGI JAT

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